जब मदीने की फ़ज़ा में बेकरार आ जायेगा | कलाम - सय्यिद सिकंदर वारसी

जब मदीने की फ़ज़ा में बेकरार आ जायेगा
तब नसीमे फैज़ से दिल को क़रार आ जायेगा 

जब निगाहों के करीब उनका मज़ार आ जायेगा
जुर्म की बख़्शिश का दिल में एतबार आ जायेगा


ग़मज़दा आ जायेगा लेकर ग़मों की दास्ताँ
ग़मज़ादों के वास्ते फिर ग़मगुसार आ जायेगा


वो ना दामन को हवा देगा किसी देहलीज़ पर 
जो दरे-दौलत पे उनके एक बार आ जायेगा


सब हमारे सर से लेंगे दामने बख्शिश समेट
फिर तेरे दामन पे सब दार-ओ-मदार आ जायेगा


और किसे अपनी पुकारों से ग़रज़ होगी वहां 
इक वही तो है जो हो के बेकरार आ जायेगा 


हश्र में छट जायेंगे उस वक़्त बादल खौफ के 
जिस घड़ी मैदां में मदनी ताजदार आ जायेगा


अपने सजदों की खतायें बख्श दी जाएँगी सब 
हालते सजदा में जब वो अश्कबार आ जायेगा


सब के सर कोहे मिहन होंगे नज़र तुझ पर शहा 
एक जाने-बे-खता पे कितना बार आ जायेगा 


किसका मुंह देखेगा नज्दी सोचिये फिर हश्र में 
जब उन्ही के हाथ में सब इख़्तियार आ जायेगा 


हम अगर जो नाम लें अहमद रज़ा का आज भी 
नज्द की दुन्या में तूफां ज़ोर दार आ जायेगा 


या इलाही बख्श दे "सय्यिद" को रोज़े हश्र तू 
कब इसे अपनी खताओं का शुमार आ जायेगा

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